Thursday, November 25, 2010

एक और बाघ।


आज मैं अपने ब्लॉग पर अपनी वह कविता लगाने जा रहा हूँ जिसे आदरणीय उदय प्रकाश जी ने अपने ब्लॉग पर 14 मई 2010 को पोस्ट किया था। उनके पोस्ट से और उनकी टिप्पणी से मेरा जितना उत्साह बढ़ा उसका बयान मुश्किल है। मैं उदय जी का बहुत बहुत आभारी हूँ। उनकी भूमिका-नुमा टिप्पणी के साथ मैं उस कविता को यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ।
....................

अभी अभी युवा कवि फ़रीद खान की यह कविता 'एक और बाघ' पढी़। बहुत देर तक और अभी तक यह कविता ज्यों की त्यों अपने पूरे अस्तित्व के साथ मेरे मस्तिष्क में है। पिछले साल मार्च में आगरा में हुए SAARC देशों के लेखक सम्मेलन में एक अमेरिका में रह रहे भारतीय अंग्रेज़ी कवि ने एक कविता सुनाई थी :'वे लोग जो बाघ को बचाने का दावा कर रहे हैं/ वे लोग झूठ बोलते हैं/ क्योंकि वे घास के बारे में चुप हैं...''
फ़रीद की इस कविता के अभागे बाघ के स्वप्न में भी घास है। अपनी हत्या के ठीक पहले।

'बाघ' कवियों के लिए एक बहुत प्रिय विषय रहा है। होर्खे लुइस बोर्खेज़ की प्रसिद्ध कविता 'बंगाल टाइगर' के बिंब कभी विस्मृत नही होते। 'रेत की किताब' (दि बुक आफ़ सैंड) संग्रह में वह लंबी कविता बार-बार अपनी ओर खींचती रहती है। कुछ साल पहले अपने उपन्यास 'लाइफ़ आफ़ पई' (या पी) के लिए बुकर पाने वाले यान मार्टेल के उस उपन्यास में भी समुद्र में भटकते 'लाइफ़ बोट' में भी लगातार सोते हुए बंगाल टाइगर (सुंदर वन का बाघ) के जाग जाने का भय लेकिन साथ ही उसकी भव्य, गरिमापूर्ण उपस्थिति उस कथा का एक अपूर्व वातावरण बनाती है। केदारनाथ सिंह की बहुचर्चित कविता 'बाघ' पर तो मैंने लिखा भी था। वह कविता भी हिंदी की महत्वपूर्ण कविताओं में से एक है। फ़रीद की कविता की तरह ही केदारनाथ सिंह की कविता में भी कई तरह के आख्यानात्मक काव्य-रूपक है। बाघ गुर्राया और आश्रम के सारे शिष्य भाग गये लेकिन पाणिनि ने बाघ को उसकी भाषा में अशुद्धि के लिए डांटना शुरू किया, और बाघ इसीलिए उन्हें खा गया।

लेकिन फ़रीद की कविता बिल्कुल आज के समय और संदर्भ में अपनी अर्थव्यापकता में बहुत दूर तक जाती है।

अभी-अभी कुछ ही देर पहले, इस कविता पर मेरे प्रिय लेखक और अपने लेखन के लिए दुनिया भर में विख्यात अमितावा कुमार की भी टिप्पणी आयी है। उनका कहना है कि फ़रीद की इस कविता को छत्तीसगढ़ के जंगलों के पेड़ों पर टांग देना चाहिए। जिससे लोग समझ सकें अपने समय की सच्चाइयां..कि उन्हें भी अब संग्रहालय या चिड़ियाघरों में रखने की परियोजना ज़ोरों से चल रही है!

आप भी यह कविता पढ़ें ! - उदय प्रकाश ।
....................................... ........................

इसके अलावा मैं उन सभी सुधी जनों का भी आभारी हूँ जिन्होंने उदय जी की पोस्ट पर और फ़ेसबुक पर टिप्पणी कर के मेरा हौसला बढ़ाया। अब आप कविता पढ़ें।
........................................................................

गीली मिट्टी पर पंजों के निशान देख कर लोग डर गये।
जैसे डरा था कभी अमेरिका ‘चे’ के निशान से।
लोग समझ गये,
यहाँ से बाघ गुज़रा है।

शिकारियों ने जंगल को चारों ओर से घेर लिया।
शिकारी कुत्तों के साथ डिब्बे पीटते लोग घेर रहे थे उसे।
भाग रहा था बाघ हरियाली का स्वप्न लिये।
उसकी साँसे फूल रही थीं,
और भागते भागते
छलक आई उसकी आँखों में उसकी गर्भवती बीवी।

शिकारी और और पास आते गये
और वह शुभकामनाएँ भेज रहा था अपने आने वाले बच्चे को,
कि “उसका जन्म एक हरी भरी दुनिया में हो”।

सामने शिकारी बन्दूक लिये खड़ा था
और बाघ अचानक उसे देख कर रुका।
एकबारगी सकते में धरती भी रुक गई,
सूरज भी एकटक यह देख रहा था कि क्या होने वाला है।

वह पलटा और वह चारों तरफ़ से घिर चुका था।
उसने शिकारी से पलट कर कहा,


“मैं तुम्हारे बच्चों के लिए बहुत ज़रूरी हूँ, मुझे मत मारो”।

चारों ओर से उस पर गोलियाँ बरस पड़ीं।

उसका डर फिर भी बना हुआ था।

शिकारी सहम सहम कर उसके क़रीब आ रहे थे।

उसके पंजे काट लिये गये, जिससे बनते थे उसके निशान।
यह ऊपर का आदेश था,
कि जो उसे अमर समझते हैं उन्हें सनद रहे कि वह मारा गया।


आने वाली पीढ़ियाँ भी यह जानें।
उसके पंजों को रखा गया है संग्रहालय में।

3 comments:

सुशीला पुरी said...

मैंने उदय जी के ब्लॉग पर भी इसे पढ़ा था ... और आज फिर से पढ़ी ...,सचमुच बहुत व्यापक अर्थों की कविता रची है आपने ! हार्दिक बधाई !!!

Amit K Sagar said...

आपको पढ़कर बहुत बहुत अच्छा लगा. हमेशा पढ़ते रहने का जी रहेगा.
शुभकामनाएं.
---
कुछ ग़मों की दीये

Anonymous said...

गहरी और बड़ी बात - प्रशंसनीय रचना