अब अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठाने ही होंगे। तोड़ने ही होंगे मठ और गढ़ सब। - मुक्तिबोध।
कुछ ही शब्दों की माला में ढेरो बिम्ब रुपी मोती पिरो दिए आपने.आखरी पंक्ति पूरी कविता कि जान है...
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