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उसने हाथ बढ़ाया मेरी ओर
मैंने भी बढ़ कर हाथ मिलाया।
उसकी नर्म और गर्म हथेली बच्चों की सी थी।
मैंने हथेली भर कर उसका हाथ थाम लिया।
हम बात कुछ और कर रहे थे,
सोच कुछ और रहे थे,
पर हम साथ साथ समझ रहे थे,
कि यूँ हाथ मिलाना अच्छा लगता है।
रस्ता रोक कर यूँ बातें घुमाना अच्छा लगता है।
फिर दोनों ही झेंप गये।
संक्षेप में मुस्कुरा कर अपनी अपनी दिशा हो लिये।
किसी बहाने से अचानक मैं पलटा,
और वह जा चुकी थी।
कुछ सोच कर वह भी पलटी होगी,
और मैं जा चुका होउंगा।
उस रास्ते पर अब रोज़, उसी समय मैं आता हूँ।
7 comments:
मोहक और सुंदर ! मेरी बधाई !
sunadr.. kal aapki is post ko mai charcha manch pe rakhuni.. aabhaar
dil ko choo lene wali es kavita ne beete dino ki yaad dila di...
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
superb!!!! Babaji aap ki poem ke liye mere pass words nahi hai bahut pyaari hai.....ankahe prem ki bahut hi sundar abviyakti karta hai aapki poem.
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