Friday, September 04, 2015

हत्यारे

हत्यारे क्यों सामने नहीं आते हैं ?
क्यों अदालत में वे हत्या के आरोप से करते हैं इंकार ?
जबकि कर लें स्वीकार तो संभवतः सम्मान ही हो उनका. 

मैं तो वैसे भी उन्हें फूल देना चाहता हूँ कि जाकर उनकी समाधि पर चढ़ा दें,
जिनका ज़िंदा रहना उनके लिए हानिकारक था.
आख़िर एक फूल से क्या डर है उन्हें ?
चाहें तो उसकी महक की जाँच करवा लें.
उससे किसी का कोई नुकसान नहीं होता.

क्यों हत्यारे अपने बचने का हर उपाय करते हैं ?
हर तर्क गढ़ते हैं ?
हमने तो लिख कर दिया है कि हम इतिहास में कुछ भी उनके ख़िलाफ़ नहीं लिखेंगे.
न ही कोई साहित्य गढ़ेंगे किसी डिस्क्लेमर के साथ.
हमने तो राजपाट भी दे दिया और अपने घर का दरवाज़ा भी खोल रखा है,
आओ प्रभु हमारे घर आओ और हत्या करो हमारी.
फिर भी न जाने क्यों वे अँधेरे में ही आते हैं और दिन में छिप जाते हैं.