अमेरिका ने बना लिया है कास्त्रो को मारने के लिए विडियो गेम।
अब कास्त्रो बच नहीं सकता।
लेकिन,
“कम से कम उन बच्चों को तो बचा लो
जिन्होंने अभी आदमी का मांस नहीं चखा है”।
(लू शुन, एक पागल की डायरी।)
महाशक्ति अमेरिका,
उस शून्य को कभी मार नहीं पाया,
जो ‘चे’ को मारने के बाद उगा था।
जो वियतनाम से लेकर उसके सैनिक लौटे थे।
जो छाया रहा हिरोशिमा नागासाकी के आसमान पर।
जो सैकड़ों गले का फंदा बना।
एक के बाद एक सैनिकों की बलि चढ़ाने के बाद,
जो उलझ गया है उसी शून्य में,
और झुंझला रहा है ख़ुद ही में।
जैसे झुंझला रहा है बामियान में बुद्ध को ध्वस्त करने बाद तालिबान।
जिसमें उलझ कर रह गई है भाजपा 6 दिसंबर के बाद।
ध्वंस के बाद उगा वह शून्य इतना महंगा पड़ता है,
कि हिरोशिमा पर बम गिराने वाला हो जाता है विक्षिप्त।
आभासी युद्ध से नहीं जीती जाती दुनिया।
राजपाट छोड़ कर मैदान में आना पड़ता है बुद्ध की तरह।
4 comments:
ओह , कैसे कैसे खेल ....
भाई फरीद ख़ान जी इतिहास की जानकारी बाँटती और अपनी राय उँडेलती आपकी कविता को पढ़ना सुखद अनुभव रहा| यह कविता 'ध्वंस के बाद के शून्य' की सफलतम विवेचनाओं में से एक होनी चाहिए|
बहुत बहुत शानदार।
अमरीका की नाक के नीचे बैठकर छोटा सा देश अमरीका की बैंड बजा रहा है और अमरीका उसका कुछ न बिगाड़ पाया।
सही कहा आपने , कुछ समेटने की चक्कर में सब लुट जाता है . कभी कभी ख्याल आता है .. और कितना और बदतर और विवेकहीन हो सकता है मानव !
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