मैंने पहली बार रसोई देखी, अभी.
जब हर किसी के लिए पूरा शहर बंद है
और कुछ लोगों का चूल्हा भी बुझ गया है.
मैंने सत्य को सुलगता देखा.
और कुछ लोगों का चूल्हा भी बुझ गया है.
मैंने सत्य को सुलगता देखा.
रसोई तो पहले भी देखी थी पर असल में देखी नहीं थी.
जैसे हम कभी अपने उस पैर को नहीं देखते
जिसके सहारे ही हम खड़े हैं या चल पाते.
जब वह थक कर चूर हो जाता है,
जब वह कुछ भी करने से कर देता है इंकार.
तब ही देखते हैं हम अपने पैर को.
जैसे हम कभी अपने उस पैर को नहीं देखते
जिसके सहारे ही हम खड़े हैं या चल पाते.
जब वह थक कर चूर हो जाता है,
जब वह कुछ भी करने से कर देता है इंकार.
तब ही देखते हैं हम अपने पैर को.
तो, मैंने पहली बार रसोई देखी,
चूल्हे से निकलती लपटें देखीं.
गरम गरम कड़ाही देखी.
फूलती पिचकती रोटी देखी.
चूल्हे से निकलती लपटें देखीं.
गरम गरम कड़ाही देखी.
फूलती पिचकती रोटी देखी.
भगौने से उठता भाप देखा.
उसमें उबलता दूध देखा.
धुआँ देखा.
चिमटा देखा.
हाथ को आग से जलते देखा.
नल का ठंडा पानी देखा.
सब पहली बार. सब पहली बार देखा.
उसमें उबलता दूध देखा.
धुआँ देखा.
चिमटा देखा.
हाथ को आग से जलते देखा.
नल का ठंडा पानी देखा.
सब पहली बार. सब पहली बार देखा.
जब पोर पोर में पसीना देखा.
उसमें अपनी माँ को देखा.
माँ को तवे पर सिंकते देखा.
भात के साथ उबलते देखा.
दाल के साथ बहते देखा.
धैर्य को देखा, धैर्य से देखा.
एक जीवन को जलता देखा.
उसमें अपनी माँ को देखा.
माँ को तवे पर सिंकते देखा.
भात के साथ उबलते देखा.
दाल के साथ बहते देखा.
धैर्य को देखा, धैर्य से देखा.
एक जीवन को जलता देखा.
मैंने पहली बार भूख को देखा.
मुँह में घुलते स्वाद को देखा.
पेट में उतरता अमृत देखा.
मुँह में घुलते स्वाद को देखा.
पेट में उतरता अमृत देखा.
खाते हुए, अघाते हुए
मैंने घर के बाहर भूखा देखा.
उसके सूखे होंठ को देखा.
आँखों में उसकी लपटें देखीं.
मैंने घर के बाहर भूखा देखा.
उसके सूखे होंठ को देखा.
आँखों में उसकी लपटें देखीं.
मैंने इधर देखा, मैंने उधर देखा.
मैंने ख़ुद को नज़र चुराते देखा.
मैंने ख़ुद को नज़र चुराते देखा.
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