Monday, October 25, 2010

इंसाफ़

अगर लोग इंसाफ़ के लिए तैयार न हों।
और नाइंसाफ़ी उनमें विजय भावना भरती हो।
तो यक़ीन मानिए,
वे पराजित हैं मन के किसी कोने में।
उनमें खोने का अहसास भरा है।
वे बचाए रखने के लिए ही हो गये हैं अनुदार।
उन्हें एक अच्छे वैद्य की ज़रूरत है।

वे निर्लिप्त नहीं, निरपेक्ष नहीं,
पक्षधरता उन्हें ही रोक रही है।
अहंकार जिन्हें जला रहा है।
मेरी तेरी उसकी बात में जो उलझे हैं,
उन्हें ज़रूरत है एक अच्छे वैज्ञानिक की।

हारे हुए लोगों के बीच ही आती है संस्कृति की खाल में नफ़रत।
धर्म की खाल में राजनीति।
देशभक्ति की खाल में सांप्रदायिकता।
सीने में धधकता है उनके इतिहास।
आँखों में जलता है लहू।
उन्हें ज़रूरत है एक धर्म की।

ऐसी घड़ी में इंसाफ़ एक नाज़ुक मसला है।
देश को ज़रूरत है सच के प्रशिक्षण की।

7 comments:

अभय तिवारी said...

कविता तो अच्छी है ही, हालांकि स्थितियां विषम है। फिर भी ब्लौग खोलने की बधाई स्वीकारो!

Farid Khan said...

सर, शुक्रिया। पर मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कैसे क्या करना होता है। उसी में अभी उलझा हुआ हूँ और प्रयोग के तौर पर एक कविता डाल दी। पर शीर्षक कैसे पड़ता है वही खोज रहा हूँ। इसके अलावा ले-आऊट और डिज़ायन आदि बहुत आड़ा तिरछा हो रहा है। देखते हैं .......।

अफ़लातून said...

प्रिय भाई फ़रीद,
फेसबुक के दौर में भी आपने एक श्रम-साध्य किन्तु रचनात्मक माध्यम अपनाया , आभार। सातत्य बनाए रखिएगा ।
सप्रेम शुभ कामना.

Unknown said...

फरीद जी, कविता और ब्लॉग दोनों के लिए बधाई. उम्मीद है अच्छी कविताओं का लाभ इसी तरह मिलता रहेगा..........

ghughutibasuti said...

आपका नाम कलामे रूमी में देखा,मित्रों से सुना,आज आपकी कविता भी पढने को मिली। कविता को तो समझने की कोशिश कर रही हूँ। नए ब्लौग के लिए बधाई।
शीर्षक को title ( which will be below हमन है ....., Posting and then New post and in a rectangular box) डाल दीजिए। आप तो बस पोस्ट डालते जाइए, यहाँ सहायता करने वालों की कमी नहीं है।
यूँ ही लिखते रहिए।
घुघूती बासूती

ढाईआखर said...

ब्‍लॉग के लिए बधाई। इससे निरंतरता बनी रहेगी। और रचनाएँ एक जगह मिल जाएँगी। रही बात तकनीकी दिक्‍कतों की तो अभय जी के साथ कुछ घंटे बिताओ, सब समझ में आ जाएगा।

Amrendra Nath Tripathi said...

आगाज ही इतना सुन्दर है , तो विस्तार भी बढियां ही रहेगा ! सुन्दर कविता है !