Tuesday, January 04, 2011

1975 का लोकगीत


बिदेसी की चिट्ठी नहीं आई
बरस बीत गए।
कुछ भेजा नहीं उसने,
बरस बीत गए।

स्वाद गया रंग गया जब वह गया,
खाना गले से उतरे बरस बीत गए।

सुनते हैं ईनाम है,
ज़िन्दा या मुर्दा,
सिर पे उसके।
बाग़ी हुआ, बीहड़ गया,
बरस बीत गये।
पोस्टर लगा, पुलिस आई,
चौखट उखाड़ के ले गई,
कुर्की हुई, बेटा हुआ, बरस बीत गये।

भेज कोई सन्देस कि अब तो बरस बीत गए।
छाती मेरी सूख गई, बरस बीत गये।
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इस कविता को समालोचन पर भी पढ़ सकते हैं।

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