Wednesday, February 02, 2011

प्रेमिका के नाम

मैंने तुम्हारे खेत में जो धान रोपा था,
उसमें बाली आ गई है अब।
वह धूप में सोने की तरह चमकती है,
और हवाओं की सरसर में वैसे ही झुकती है,
जैसे तुम झुक आती हो मुझ पर।

4 comments:

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA said...

वाह, कई पढ़े पर ये एहसास..अह्ह्ह.
बहुत खूबसूरत.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

वाह ..बहुत खूबसूरत एहसास

Ravi yadav said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

Kundan said...

pata nahi imandaari se kahun...to lagta hai ise kahin padh chuka hun...shayad gulzar....