Sunday, May 11, 2014

एक निवेदन

जिसने मुझे मारा,
आपको पूरा भरोसा है कि वह आपको नहीं मारेगा.
आप मेरी बात सुनने को भी तैयार नहीं हैं.
आप मुस्कुराते हैं मेरी शिकायत पर,
और आपके बच्चे हँसते हैं
दरवाज़े के पीछे जाकर मुझ पर.  
ऐसा मनोरंजन आपको और कहीं नहीं मिलता है.

अब क्या मैं आपके भी मारे जाने का इंतज़ार करूँ ?
क्या मेरा मारा जाना कम पड़ता है आपके लिए ?
क्या मैं भी इंतज़ार करूं एक बड़ी त्रासदी का,
मूक बधिर बनकर देखने के लिए ?

ख़ंजर आपके भी सीने में उतरे यह ज़रूरी तो नहीं !  
दर्द से आप भी चीख़ें यह ज़रूरी तो नहीं !
आप भी बेघर हों, सुबह शाम छाती पीटें यह ज़रूरी तो नहीं !
सारे खेल आपके साथ भी हों यह ज़रूरी तो नहीं !

क्या कर दूँ कि मुझे शत्रु बताने वालों की चाल आप समझ लें पहले ही
और अपनी बारी को रोक दें आने के पहले ही.

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