Friday, May 20, 2011

बकरी



खेत में घास चरती बकरी
पास से गुज़रती हर ट्रेन को यूँ सिर उठा कर देखती है,
मानो पहली बार देख रही हो ट्रेन।
जैसे कोई देखता है गुज़रती बारात,
जैसे खिड़की से सिर निकाल कर कोई देखता है बारिश,  
जैसे एकाग्र हो कर सुनता है कोई तान। 

ट्रेन गुज़र जाने के बाद,
उस दृश्य आनन्द से निर्लिप्त वह,
चरने लग जाती है घास नये सिरे से।
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यह कविता समालोचन पर भी है।  

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