Thursday, October 28, 2010

पानी

लिखने का शौक मुझे बचपन से रहा है। पर कभी कुछ छपा नहीं। सर्वप्रथम अभय जी (अभय तिवारी) ने अपने ब्लॉग 'निर्मल आनन्द' पर 20 मई 2007 को 'पानी' प्रकाशित किया। उनको आभार के साथ एक बार फिर से अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ।


पानी
........



खबर आई है कि कुएँ बंद किए जा रहे हैं,
जहाँ से गुज़रने वाला कोई भी राहगीर,
किसी से भी पानी माँग लिया करता था।

वैज्ञानिकों के दल ने बताया है,
कि इसमें आयरन की कमी है,
मिनिरलस का अभाव है,
बुखार होने का खतरा है।

अब इस कुएँ के पानी से,
सूर्य को अर्घ्य नहीं दिया जा सकेगा,
उठा देनी पड़ेगी रस्म गुड़ और पानी की।

सील कर दिये कुएँ,
रोक दी गई सिचाई।

सूखी धरती पर,
चिलचिलाती धूप में बैठी,
आँखें मिचमिचाते हुए अम्मा ने बताया,
चेहरे से उतर गया पानी,
नालियों में बह गया पानी,
आँखों का सूख गया पानी,
प्लास्टिक में बिक गया पानी।

2 comments:

सुशीला पुरी said...

फरीद जी ! आपकी संवेदना सूखते हुये पानी को वापस लाने की ताकत रखती है , बहुत बहुत बधाई ।

niraj sah said...

Aapki kavita sirf ek vichar nahi... danka hai...aankein khuli to theek nahi to hamesha ke liye band.