Monday, December 20, 2010

बाघ

यह कविता असुविधा पर 14 दिसंबर को पोस्ट हुई थी। आज इसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
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मुझे उम्मीद है कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए,
बाघ बन जायेगा कवि,
जैसे डायनासोर बन गया छिपकली,
और कवि कभी कभी बाघ।

वह पंजा ही है
जो बाघ और कवि को लाता है समकक्ष।
दोनों ही निशान छोड़ते हैं। मारे जाते हैं।

1 comment:

Amit K Sagar said...

बहुत खूब. मौके की इक़ मुकम्मल तस्वीर.
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पंख, आबिदा और खुदा