जैसे से जैसे सूरज निकलता है,
नीला होता जाता है आसमान।
जैसे ध्यान से जग रहे हों महादेव।
धीरे धीरे राख झाड़, उठ खड़ा होता है एक नील पुरुष।
और नीली देह धूप में चमकने-तपने लगती है भरपूर।
शाम होते ही फिर से ध्यान में लीन हो जाते हैं महादेव।
नीला और गहरा .... और गहरा हो जाता है।
हो जाती है रात।
20.06.2010
यह कविता समालोचन पर भी पोस्ट हुई है।
3 comments:
गहन अभिव्यक्ति
खूबसूरत शब्द -चित्र !
आपकी कविता में प्रकृति से एकाकार हुए इश्वर का श्रेष्ठ रूप नज़र आता है,वही इश्वर पृकृति की उत्पति ,रक्षा और नाश करता है..वही महादेव पृकृति हुए जाते है..अद्भुत और खूबसूरत कविता..
Post a Comment