जब मुझे वह छोड़ के जा रही थी,
उसके लौटने की उम्मीद में उसका मन मेरे पास ही खड़ा रह गया।
पर वह जा चुकी थी पहाड़ी के उस पार,
जहाँ सूरज ढलता है शाम का।
बरसों बाद आज उसने लौटना चाहा,
पर इस बार उसके मन ने ही उसे रोक दिया।
बरसों बाद आज,
बहुत दूर निकल आने के अहसास ने
उसकी हड्डियों में जो सिहरन पैदा की
वह उम्र की झुर्रियाँ छोड़ गईं।
बहुत दूर निकल आने का अहसास,
हमेशा लौटने की अदम्य चाहत के वक़्त ही होता है,
जब लौटना उतना ही मुश्किल होता है,
जितना बचपन और जवानी का लौटना।
1 comment:
बहुत दूर निकल आने का अहसास,
हमेशा
लौटने की अदम्य चाहत के वक़्त ही होता है,
जब
लौटना उतना ही मुश्किल होता है…
बहुत भावनात्मक लिखा
बंधु फ़रीद ख़ान जी !
कहा भी तो है -
गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा …
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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