अल्लाह मियाँ कभी मुझसे मिलना
थोड़ा वक़्त निकाल के।
मालिश कंघी सब कर दूंगा, तेरा,
वक़्त निकाल के।
घूम के आओ गांव हमारे।
देख के आओ नद्दी नाले।
फटी पड़ी है वहाँ की धरती।
हौसले हिम्मत पस्त हमारे।
चाहो तो ख़ुद ही चल जाओ।
वरना चलना संग हमारे।
अल्लाह मियाँ कभी नींद से जगना
थोड़ा वक़्त निकाल के।
मालिश कंघी सब कर दूंगा, तेरा,
वक़्त निकाल के।
झांक के देखो,
खिड़की आंगन,
मेरा घर,
सरकार का दामन।
ख़ाली बर्तन, ख़ाली बोरी,
ख़ाली झोली जेब है मेरी।
अल्लाह मियाँ ज़रा इधर भी देखो,
मेहर तेरी उस ओर है।
भर कर रखा अन्न वहाँ पर,
पहरा जहाँ चहुँ ओर है।
अल्लाह मियाँ कभी ठीक से सोचो
थोड़ा वक़्त निकाल के।
मालिश कंघी सब कर दूंगा,
तेरा, वक़्त निकाल के।
.............................................. यह कविता समालोचन पर सर्वप्रथम प्रकाशित हुई।
2 comments:
बहुत सही कहा अल्लाह मियां से ..
nida fazli ki kavita jaroor dekhen....
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