मैं रोने का हक़ भी न अदा कर सका।
मैं जनाज़े पे उनके जा न सका।
वक़्ते रुख़्सत अगर न मिलो किसी से।
सुना है सपने में उसका वुजूद ज़िन्दा रहता है सदा।
तभी तो, वे सब उठ उठ के आते हैं मेरे पास।
जैसे आता है धधकते ईंजन में कोयला झोंकने गाड़ीवान।
और चल पड़ता हूँ मैं पटरी थाम। तेज़ गाम।
3 comments:
वक़्ते रुख़्सत अगर न मिलो किसी से।
सुना है सपने में उसका वुजूद ज़िन्दा रहता है सदा। amazing...n true
भावनातम रचना
मेरी अपनी बात लगती है...
Post a Comment